The Kota City's Most Visited Place ( Mathuradheesh Mandir)
Mathuradheesh Mandir
वल्लभ के सप्त उपपीठों में प्रथम स्थान कोटा के मथुरेश जी का है | कोटा के पाटनपोल में भगवान मथुराधीश जी का मंदिर/(Mathuradheesh Mandir Kota Rajasthan) है , इसी कारण यह नगर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ है | मंदिर एवं उसके आस-पास के क्षेत्र की स्थिति श्री नाथ द्वारा की प्रतिकृति प्रतीत होती है | हालाँकि मंदिर श्रीनाथ द्वारा जितना विशाल नहीं है | वल्लभ सम्प्रदाय का प्रधान पीठ होने से वर्ष भर इस सम्प्रदाय के धर्मावलंबी यहाँ आते रहते है | यहाँ मथुरेश जी की सेवा वल्लभ सम्प्रदाय की परम्परा के अनुरूप की जाती है | वर्ष भर इस सम्प्रदाय के अनुसार उत्सवों का आयोजन होता है | यहाँ आयोजित प्रमुख उत्सवों में कृष्णजन्माष्टमी, नन्दमहोत्सव, अन्नकूट तथा होली का उत्सव प्रमुख है |
प्रधानपीठ मथुरेश जी की स्थिति कोटा में होने के कारण वल्लभ सम्प्रदाय के लोगों के इसके प्रति श्रीनाथद्वारा के समान ही श्रद्धा है | श्री मथुराधीश प्रभु का प्राकट्य मथुरा जिले के ग्राम करणावल में फाल्गुन शुक्ल एकादशी संवत 1559 विक्रमी के दिन संध्या के समय हुआ था | महाप्रभु वल्लभाचार्य जी यमुना नदी के किनारे उस दिन संध्या समय संध्योवासन कर रहे थे | तभी यमुना का एक किनारा टूटा और उसमें से सात ताड़ के वृक्षों की लम्बाई का एक चतुर्भुज स्वरुप प्रकट हुआ | महाप्रभु जी ने उस स्वरुप के दर्शन कर विनती की कि इतने बड़े स्वरुप की सेवा कैसे होगी | इतने में 27 अंगुल मात्र के होकर श्री महाप्रभु, वल्लभाचार्य जी की गोद में विराज गये इसके पश्चात् महाप्रभु जी के उस स्वरुप को वल्लभाचार्य जी ने एक शिष्य श्री पद्यनाभ दास जी को सेवा करने हेतु दे दिया
कुछ वर्षों तक सेवा करने के पश्चात् वृद्धावस्था होने के कारण श्री मथुराधीश जी को पद्यनाभ दास जी ने महाप्रभु जी के पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ जी को पधरा दिया | श्री विट्ठलनाथ जी के सात पुत्र थे | उनमें ज्येष्ठ पुत्र श्री गिरधर जी को श्री मथुराधीश प्रभु को बंटवारे में दे दिया |
सन 1729 विक्रमी के समय मुग़ल शासक औरंगजेब के मंदिर तोड़ों अभियान के कारण बज्रभूमि के सभी स्वरुप रवाना होकर हिन्दू राजाओं के राज्य में चले आये | अतः श्री मथुराधीश के प्रभु जी संवत 1727 में हाड़ा राजाओं के राज्य बूंदी शहर में पधारे और बूंदी शहर के बालचंद पाडा मोहल्ले में करीब 65 वर्ष विराजे
संवत 1795 में कोटा के महाराज दुर्जनशाल जी ने प्रभु को कोटा पधराया, कोटा नगर में पाटन पोल द्वार के पास प्रभु का रथ रुक गया तो तत्कालीन आचार्य गोस्वामी श्री गोपीनाथ जी ने आज्ञा दी कि प्रभु की यहीं विराजने की इच्छा है | तब कोटा राज्य के दीवान द्वारकादास जी ने अपनी हवेली को गोस्वामी जी के सुपुर्द कर दी | गोस्वामी जी ने उसी हवेली में कुछ फेर बदल कराकर प्रभु को विराजमान किया तब से अभी तक इसी हवेली में विराजमान है | यहाँ वल्लभ कुल सम्प्रदाय की रीत के अनुसार सेवा होती है
मंदिर में मंगला आरती प्रातः 6:30 से 7:15 बजे , ग्वाल प्रातः 9:30 बजे, राज भोग आरती प्रातः 10:30 बजे, उत्थापन सांय 3:30 बजे से सांय 4:00 बजे, शयन सायं 6.30 बजे, शयन के दर्शन रामनवमी से बंद रहते है तथा कार्तिक बदी अष्टमी में खुलने लग जाते है | यहाँ के विभिन्न उत्सवों में अन्नकूट, जन्माष्टमी, जलझूलनी, एकादशी, फागोत्सव, होली, दीपावली आदि प्रमुख त्योहारों में भक्तों का सैलाब होता है | सामान्य दिनों में 2 हजार, रविवार एवं अवकाश वाले दिनों में 3 से 4 हज़ार, पर्वों पर 10 से 12 हज़ार एवं सम्पूर्ण वर्ष में लगभग 12 से 15 लाख भक्त दर्शन करते है(Mathuradheesh Mandir Kota Rajasthan) |
Adress:-Barrage Road, Patanpol, Rampura, Kota, Rajasthan
Jai shree Radhe Krishna
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